दो बहनें

उधर नीरद की सम्मति पाने में देर नहीं लगी, यद्यपि उसकी भावभङ्गी से यही प्रकट हुआ कि विवाह का सम्बन्ध वैज्ञानिक के लिये एक बड़ा भारी त्याग है---प्रायः आत्मघात के आसपास का। शायद इसी दुर्योग को किसी प्रकार शमन करने के उपाय-स्वरूप यही शर्त तय पाई गई कि सब बातों में नीरद ऊर्मि की रहनुमाई करेगा अर्थात् अपनी भावी पत्नी के रूप में उसे धीरे-धीरे अपने ही हाथों तैयार कर लेगा। यह भी होगा वैज्ञानिक ढँग से, दृढ़-नियन्त्रित नियमों के अनुसार,लैबोरेटरी की अभ्रान्त प्रक्रिया के समान।

नीरद ने ऊर्मि से कहा, "पशु-पक्षी प्रकृति के कारखाने से बने-बनाए माल की तरह तैयार निकलते हैं लेकिन मनुष्य कच्चा माल है, उसे तैयार करने का भार स्वयं मनुष्य पर ही है।"

ऊर्मि ने नम्रता के साथ कहा, "अच्छी बात है, परीक्षा कीजिए, बाधा नहीं पाएँगे।"

नीरद ने कहा, "तुममें नाना प्रकार की शक्तियाँ हैं। उन्हें बाँधना होगा तुम्हारे जीवन के एकमात्र लक्ष्य के चारों ओर। तभी तुम्हारा जीवन सार्थक होगा। किसी अभिप्राय के आकर्षण से विक्षिप्त को संक्षिप्त करना पड़ेगा, वह कसा जायगा, डायनेमिक होगा, तभी उस एकत्व को मारल आर्गेनिज्म कहा जा सकेगा।"

ऊर्मि ने पुलकित होकर सोचा, अनेक युवक तो उनके घर चाय की टेबुल पर उपस्थित हुए हैं, टेनिस कोर्ट में आए हैं परन्तु सोचने के लायक़ बात उन्होंने कभी नहीं कही, दूसरा कोई कहे भी तो जमुहाने लगते हैं। असल में किसी भी बात को अत्यन्त गम्भीर भाव से कहने का एक अपना ढँग है नीरद के पास। वह जो भी कहता, उसीमें ऊर्मि को एक आश्चर्यजनक तात्पर्य मालूम होता, वह उसे अत्यधिक इन्टेलेक्चुअल जान पड़ता।

राजाराम ने अपने बड़े दामाद को भी बुलाया। बीच-बीच में निमन्त्रण का बहाना बनाकर एक-दूसरे से अच्छी तरह परिचय करा देने की चेष्टा की। शशांक ने शर्मिला से कहा, "इस लड़के के पेट की दाढ़ी असहाय है। वह समझता है हम सब लोग उसके विद्यार्थी हैं। सो भी आगे बैठनेवाले नहीं, आख़िरी बेंच के आख़िरी कोनेवाले।"

शर्मिला ने हँसकर कहा, "यह तुम्हारी जेलेसी है। क्यों, मुझे तो यह बहुत अच्छा लगता है।"

शशांक ने कहा, "छोटी बहन के साथ स्थान-परिवर्तन करने का विचार कैसा है?"

शर्मिला बोली, "तब तो तुम शायद शान्ति की साँस लोगे, मेरी बात और है।"

शशांक के प्रति नीरद का भ्रातृभाव भी कुछ बढ़ा हुआ नहीं लगता। शशांक मन ही मन कहता, 'यह तो मजदूर आदमी है, इसे वैज्ञानिक कौन कहे! हाथ तो हैं लेकिन दिमाग कहाँ!"

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